शून्य कार्य किसे कहते है- ldkalink

शून्य कार्य (zero work) का अर्थ क्या है को समझने से पहले हम कार्य को अच्छे से समझते हैं विज्ञान की भाषा में कोई भी कार्य संपन्न हुआ तभी माना जाता है जब किसी वस्तु पर बल लगाया जाता है और वस्तु की स्थिति में परिवर्तन होता है तब कार्य माना जाता है।

शून्य कार्य का यह अर्थ है कि वस्तु पर लगने वाला बल और विस्थापन दोनो की दिशा परस्पर लंबवत होना चाहिए। 

अतः शून्य कार्य किसे कहते हैं (shunya karya kise kahate hain) या इसकी परिभाषा (paribhasha) को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है: 

शून्य कार्य किसे कहते हैं ? 


जब वस्तु पर लगने वाला बल और विस्थापन की दिशा परस्पर लंबवत होती है तो किया गया कार्य एक शून्य कार्य होता है जैसे की उदाहरण के लिए वस्तु को पकड़ के चलने पर बल नीचे की ओर लगता है और वस्तु आगे की ओर विस्थापित होते रहती है।

शून्य कार्य में बल और विस्थापन के बीच बनने वाला कोण 90 अंश का होता है जब बल या विस्थापन इन दोनों में से कोई भी शून्य होता है तो किया गया कार्य शून्य कार्य होता है इसमें वस्तु की ऊर्जा अपरिवर्तित होती है। 

उदाहरण/example


वस्तु को पकड़कर चलने में किया गया कार्य 

जब हम किसी वस्तु को पकड़ कर चलते रहते हैं तो वस्तु पर नीचे की ओर बल लगते रहता है पर वस्तु हमारे साथ आगे की ओर विस्थापित होते रहता है।

इस प्रकार बल दिशा नीचे की ओर और वस्तु के विस्थापन की दिशा व्यक्ति के आगे चलने की ओर होती है इस प्रकार इन दोनों के बीच बनने वाला कोण लंबवत होता है अर्थात ये दोनो एक दूसरे के परस्पर लंबवत हो जाते हैं इस स्थिति में किया गया कार्य है के शून्य कार्य होता है।


दीवार को धक्का देने में किया गया कार्य 

जब हमारे द्वारा किसी दीवार को धक्का दिया जाता है तो इस दीवार पर बल तो लग रहा है पर दीवार अपनी स्थिति में बनी रहती है इसमें कोई भी विस्थापन नहीं होता है इस प्रकार का किया गया कार्य एक शून्य कार्य है। 

सिर पर वस्तु रखकर क्षैतिक तल में चलने में किया गया कार्य


जब किसी कुली द्वारा सिर पर कोई सामान रखकर क्षैतिक तल में चला जाता है तो गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा किया गया कार्य शून्य होता हैं क्योंकि बल और विस्थापन की दिशा परस्पर लंबवत होती है।

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